Traditional Software Development क्या होता है? और उसके Phases कौन – कौन से होते है?

आप लोग यह तो जानते ही है की आज के इस डिजिटल युग (Digital Age) में Software Development जो है वह Agile, DevOps आदि जैसी कई सारी नई – नई तकनीकों की Modern Methodology की सहायता से काफी तेज़ी से आगे बढ़ता जा रहा है।

लेकिन फिर भी Traditional Software Development अज के समय में कई सारी बड़ी – बड़ी कंपनीओ और प्रोजेक्ट्स के लिए एक मजबूत (Strong) और भरोसेमंद विकल्प बन चुका है। यह एक Linear, Structured, और Documentation-Based प्रक्रिया होती है, जो हमेशा Waterfall Model को फॉलो करती है।

अगर आप Software Development Life Cycle (SDLC) को अच्छी तरह से समझना चाहते हैं और यह जानना चाहते हैं कि Traditional Software Development में क्या खासियत और कमियां हैं, तो यह आर्टिकल आपके लिए काफी ज्यादा हेल्पफुल है।

What is Traditional Software Development in Hindi?

यह एक Structured development approach है, जिसका उपयोग शुरुआती (beginners) और छोटे सॉफ्टवेयर प्रोजेक्ट्स (software projects) में किया जाता है। इसका इस्तेमाल मुख्य रूप से उन सॉफ्टवेयर को विकसित करने के लिए किया जाता है जिनमे सुरक्षा (security) और अन्य complex factors ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं होते। इसका इस्तेमाल नए लोगों द्वारा ज्यादा किया जाता है क्योंकि यह किसी भी सॉफ्टवेयर को विकसित करने की सबसे आसान और सरल प्रक्रिया है। इसमें निम्नलिखित 5 phases होते है।

Phases of Traditional Software Development in Hindi:

Traditional Software Development में निम्नलिखित 5 मुख्य चरण (phases) होते हैं, जो मुख्यतः SDLC Phases in Hindi का हिस्सा हैं:

Traditional Software Development
Traditional Software Development
  1. आवश्यकताओं का विश्लेषण (Requirement Analysis)
  2. डिज़ाइन (Design)
  3. इंप्लीमेंटेशन (Implementation)
  4. कोडिंग और परीक्षण (Coding & Testing)
  5. रखरखाव (Maintenance)

1. आवश्यकताओं का विश्लेषण (Requirement Analysis):

  • यह SDLC का सबसे पहला और सबसे महत्वपूर्ण चरण होता है। जिममें प्रोजेक्ट की आवश्यकताओं के अनुसार उसके goals और जरूरतों को समझा जाता है।
  • इस Software Development में हम इस चरण का उपयोंग सबसे पहले करते है ताके हम जो सॉफ्टवेयर बना रहे है। वह ये सुनिश्चित कर सके की हम जो विकास कर रहे है वह सही दिशा (direction) में हो और इस की सहायता से हम developers की आवश्यकताओ को भी पूरा कर पाते है।

2. डिज़ाइन (Design):

  • डिज़ाइन, सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट का दूसरा चरण होता है जिसमें Architects और designers मिल कर सॉफ्टवेयर का detailed blueprint बना कर तैयार करते है।
  • इसमें सॉफ्टवेयर की हर छोटी से छोटी जानकारी और सॉफ्टवेयर के हर एक एलिमेंट्स पर गौर किया जाता है।
  • इस चरण में Software Architecture और UI/UX elements परिभाषित किए जाते हैं।
  • सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट के डिजाइनिंग चरण में जो भी निर्णय लिए जाते है उन का सीधा प्रभाब सॉफ्टवेयर की efficiency, scalability और maintainability पर होता है।
  • अगर हम इसके डिज़ाइन को सॉलिड और पूरी तरह प्लानिंग से करते है तो implementation phase में कम जटिलता (complications) आती है।

3. इंप्लीमेंटेशन (Implementation):

  • इम्प्लीमेंटेशन चरण, Traditional Software Development की वह स्टेज होती है जंहा पर हम इससे पहले developers के द्वारा जो डिज़ाइन और योजनाए (Plans) बनाई गई थी उने वास्तविक सॉफ़्टवेयर में बदलते है।
  • सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट में इम्प्लीमेंटेशन चरण तीसरे नंबर का चरण होता है जिसमें हम developers के द्वारा किये गए डिज़ाइन और योजनाओ के अनुसार वास्तविक कोडिंग और डेवलपमेंट करते है।

4. कोडिंग और परीक्षण (Coding and Testing):

  • कोडिंग और टेस्टिंग, सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट का चौथा और सबसे महत्वपूर्ण चरण होता है। इस चरण में हम सॉफ्टवेयर डिज़ाइन और प्लानिंग को कोडिंग की सहायता से वास्तविक सॉफ़्टवेयर में तो बदलते है और साथ ही इस चरण में हम उस सॉफ्टवेयर की टेस्टिंग भी करते है।

5. रखरखाव (Maintenance):

  • यह चरण, सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट का सबसे आखरी आखरी और महत्वपूर्ण चरण होता है जिसमें bugs fix, optimizations और ongoing updates होती है साथ ही इस चरण में “एन्ड-यूजर” की जरूरत के हिसाब से भी सॉफ्टवेयर को मेन्टेन किया जाता है।

Limitations of traditional software development in Hindi

  1. Slow & Rigid: अगर आप इसमें एक बार कोई चरण (Phase) पूरा कर लेते है तो उसके बाद उस चरण को बदलना काफी ज्यादा मुश्किल हो जाता है। इस कारण से किसी भी सॉफ्टवेयर को आने वाली नई टेक्नोलोजी के हिसाब से कम्पेटिबल बनाना एक बहुत ही बड़ी चुनौती हो सकती है।
  2. High Cost of Changes: अगर कभी भी प्रोजेक्ट के बीच में किसी भी तरह की जरूरतों का बदबाल करना होता है तो डेवेलपर्स को उसकी पूरी प्रक्रिया द्वारा से शुरू करनी पड़ती है। जिसके कारन फिर से काम करने की कीमत और समय दोनों बढ़ सकती है।
  3. Late Feedback Loop: सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट में जो टेस्टिंग चरण होता है वह सबसे लास्ट में आता है, जिसके कारण इसकी त्रुटियाँ (errors) के बारे में पता करने बहुत ज्यादा देर हो सकती है। अगर शुरू में कोई गलती हो गई है, तो उसका अशर काफी देर बाद समझ में आता है।
  4. Not for Dynamic Projects: अगर प्रोजेक्ट्स की जरूरते बार – बार बदलती रहती है तो कुछ लिमिट के बाद यह जो प्रक्रिया होती है वह काम करना बंद कर देती है क्योकि इसमें फ्लेक्सिबिलिटी नहीं होती है।
  5. Lack of Client Involvement: इसमें क्लाइंट को ज्यादा तर अपनी सभी जरूरतों को शुरू में ही बताना होता है, क्योकि अगर क्लाइंट एक बार अपनी जरूरतों को बता देता है, तो उसके बाद वह सीधा लास्ट में फाइनल प्रोडक्ट को देखने के वाद feedback के जरिए ही बता सकता है। अगर उसे बीच में किसी बदलाब की ज़रुरत होती है तो उसकी वजह से प्रोजेक्ट को बनने में काफी ज्यादा समय लग सकता है।
  6. Testing at the End: जब एक बार सॉफ्टवेयर का डेवलपमेंट पूरा हो जाता है तो उसके बाद टेस्टिंग होती है, जो “बग फिक्सिंग” और “इम्प्रूवमेंट” की संभावनाओ को कम कर देती है। यह तरीका महत्वपूर्ण एप्लीकेशन के लिए काफी ज्यादा खतरनाक साबित हो सकता है।

Advantages of Traditional Software Development in Hindi

  • Well-Established Methodology: Traditional software development एक तरह से उसी पद्धति का पालन करता है जो अच्छी तरह से स्थापित की गई हो। यानि जो पद्धति हर किसी को आसानी से समझ आ जाती है इसके अलाबा यह पद्धति डॉक्युमेंटेड भी होती है।
  • Clear Requirements: यह जो प्रक्रिया है उसमे हमेशा यह सुनिश्चित किया जाता है की डेवेलपर्स ने जो फाइनल प्रोडक्ट तैयार किया है वह ग्राहकों और उपयोग कर्ताओ की सभी जरूरतों को सही तरीके से पूरा करे।
  • Structured Approach: अगर वैसे देखा जाए तो Traditional software development जो है वह हमेशा उसी पद्धति को फॉलो करता है जो अच्छी तरह से स्ट्रक्चर्ड होती है, जिसकी सहायता से यह सुनिश्चित किया जाता है कि डेवेलपर्स ने जिस प्रोजेक्ट को बना कर तैयार किया है वह ट्रैक पर चल भी रहा है या नहीं।
  • Proven Success: यह एक तरह से Traditional software development की सफलता का सिद्ध किया हुआ ट्रैक रिकॉर्ड है और इसका इस्तेमाल बहुत सारी इंडस्ट्रीज में व्यापक रूप से किया जाता है।
  • Quality Control: यह एक तरह की पद्धति है जिस का उपयोग Traditional software development में किया जाता है जिस पद्धति में टेस्टिंग और क्वालिटी कण्ट्रोल आदि जैसी प्रोसेस शामिल होती है जिसके उपयोग से फाइनल प्रोडक्ट की हाई क्वालिटी बनाए रखने में सहायता मिलती है।
  • Better Documentation: अगर भविष्य में सॉफ्टवेयर को किसी तरह के modifications या फिर maintenance की जरूरत होती है तो उसके लिए proper documentation उपलव्ध होता है।

Disadvantages of Traditional Software Development in Hindi

  • Slow Process: इस सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट में प्लानिंग और डिज़ाइन के चरण बहुत ही ज्यादा बड़े होते है जिसके कारण यह जो डेवलपमेंट प्रक्रिया है वह बहुत ही ज्यादा स्लो है।
  • Lack of Flexibility: इस डेवलपमेंट की फ्लेक्सिबिलिटी बहुत ही कम होती है और साथ ही इस में एक बार सॉफ़्टवेयर (software) की डेवलपमेंट शुरू हो जाती है तो उसके बाद इस सॉफ्टवेयर को जरूरतों और डिज़ाइन में किसी भी तरीके का बदलना करना हो तो वह बहुत ही मुश्किल हो जाता है।
  • High Cost: Traditional software development की कीमत बहुत ज्यादा होती है खास कर उस समय जब प्रोजेक्ट बहुत ही बड़ा और कठिन होता है।
  • Limited Customer Involvement: इस डेवलपमेंट में कस्टमर भी शामिल होती है लेकिन सिर्फ उसी समय तक जब डेवेलपर्स, प्लानिंग और डिज़ाइन इन सभी चरण पर काम कर रहे होत्ते है। जो बाद में फाइनल प्रोडक्ट के तैयार होने के बाद उस प्रोडक्ट की एक्चुअल जरूरत के हिसाब से मैच नहीं होती।
  • Limited Innovation: इस डेवेलोपमेंट प्रोसेस में कंजर्वेटिव और जोखिम (risk) बहुत ही कम होने के कारन इसमें डेवलपमेंट के विचारो और innovation का दायरा बहुत ही कम होता है।

Modern Alternatives to Traditional Software Development in Hindi

आज के इस समय में Agile, Scrum, और DevOps आदि जैसी मॉडर्न सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट जैसी सभी प्रक्रियाए बहुत ही ज्यादा प्रशिद्ध हो रही हैं। यह जो प्रक्रियाए है वह काफी ज्यादा Flexible, Faster, और Client-Oriented होती हैं।

  • Agile Development – यह एक Iterative & Collaborative प्रक्रिया है, जिसमें जगातार Feedback पर जोर दिया जाता है।
  • Scrum Model – यह Agile का एक Subset होता है, जिसमें डेवलपमेंट को Short Sprints में बाँट दिया किया जाता है।
  • DevOps – यह डेवलपमेंट और Operations Teams के बीच Continuous Integration (CI) और Continuous Deployment (CD) पर गौर करता है।

अगर आपके द्वारा बनाया गया Project Dynamic होता है और आपको Frequent Updates की आवश्यकता होती है, तो Agile या DevOps बेहतर और अच्छा विकल्प साबित हो सकता हैं।

निष्कर्ष (Conclusion):

Traditional Software Development जो है वह एक Structured और Disciplined Approach होता है, जो काफी ज्यादा बड़े पैमाने के Projects के लिए Ideal होती है। हालांकि, Agile, Scrum और DevOps जैसी Modern Approaches काफी ज्यादा Flexible और Fast Delivery प्रदान करती हैं।

अगर आपको एक Stable और Well-Documented Software Process की जरूरत होती हैं, तो उसके लिए Traditional Software Development एक अच्छा विकल्प साबित हो सकता है। लेकिन यदि आपको बार – बार Rapid Changes और Frequent Updates की आवश्यकता होती है, तो आपको Agile या DevOps को बहुत ज्यादा प्राथमिकता (Priority) देनी चाहिए।

निवेदन:- आपको हमारे द्वारा बताई गई यह Traditional Software Development से सम्बंधित जानकारी कैसी लगी। साथ ही अपने विचारो को भी हमे नीचे कमेंट में साझा करें। Thank You!

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