What is IPv4 and IPv6? | Difference Between IPv4 and IPv6 in Hindi

नमस्कार दोस्तों, हमेशा की तरह हम आपका स्वागत करते है। The Hindi Study के एक और ब्लॉग पोस्ट में आज के इस पोस्ट में हम Difference Between IPv4 and IPv6 in Hindi पर चर्चा करने वाले है, साथ ही हम इस पोस्ट में यह भी जानेंगे के IPv4 और IPv6 क्या होता है, और IPv4 को IPv6 में कैसे switch करते है। तो अगर आप भी कंप्यूटर नेटवर्क के इस टॉपिक को पड़ने में रुचि रखते है तो इस पोस्ट को पूरा जरूर पड़े।

जिस address के जरिए कोई भी दूसरा computer हमारे कंप्यूटर से communicate करता है, उससे ही IP address या फिर Internet Protocol Address कहा जाता है। उदाहरण के लिए, अगर हमें कभी भी किसी तरह के webpage को load करना होता है या फिर कुछ download करना होता है। तो उसके बाद हमें उस file या webpage को कंही पर भेजने या deliver करने के लिए एक address की जरूरत होती है और जिस address की हमें जरूरत होती है उसे IP Address कहा जाता है।

IP (Internet Protocol) के दो versions होते है: IPv4 और IPv6. IP के इन दोनों version में से जो IPv4 है वह इसका पुराना version है, और IPv6 एक नया version है। इसमें दोनों के अपने – अपने खुद के अलग – अलग functions और features है। लेकिन इन दोनों IP versions में काफी ज्यादा differences है और इनको समझना बहुत ज़रूरी होता है। क्योकि जैसे – जैसे समय के साथ internet grow कर रहा है वैसे – वैसे हमें IPv6 की ज़रुरत समझमें आती जा रही है। Internet Protocol Address के versions के बारे में जानने से पहले हम यह जान लेते है की IP address होता क्या है।

What is IP in Hindi?

IP यानी Internet Protocol address एक यूनिक नंबर का set होता है जो हर devices को उस समय assign किया जाता है। जब वह किसी तरह के network यानि इंटरनेट से connect होती है। दरअसल, ये जो address है वह बिल्कुल आपके घर के address की तरह होता है। जो आपके Mobile Phone, Computer या किसी भी डिवाइस को किसी और दूसरी devices से बात चीत करने में मदत करता है। इसके अलावा, जब भी आप किसी ब्राउज़र या सर्च इंजन पर किसी website को visit करते है। तो उस वक्त आपकी डिवाइस IP address का उपयोग करके उस website के सर्वर से कनेक्शन बनती है। इस तरह, IP address की सहायता से आपका डिवाइस इंटरनेट पर सही जगह तक पहुँच पाता है।

IP (Internet Protocol) address काफी ज्यादा technical format मैं होता है और साथ ही यह data packets, network में किस तरह travel करेगा यह बताने में भी मदत करता है। ज्यादातर नेटवर्क्स IP (Internet Protocol) address का उपयोग Transmission Control Protocol (TCP) के साथ मिलकर करते है। TCP-IP दोनों एक साथ मिलकर destination और source के बीच एक virtual connection बनाते है जिससे डाटा आसानी से transfer हो सके।

What is IPv4 in Hindi?

IPv4, यानी Internet Protocol version 4, एक व्यापक रूप से इस्तेमाल होने वाला protocol है जो network पर devices की पहचान करने के लिए उपयोगी होता है। इसका प्रारंभिक introduction 1981 में DARPA के द्वारा कराया गया था। और ARPANET पर 1983 में production के लिए लागू किया गया था। आज के समय में, IPv4 primary Internet Protocol है, जो अकेला ही पूरी दुनिया के 94% Internet traffic को संभालता है।

Internet Protocol version 4 एक 32-bit address scheme का उपयोग करता है, जो लगभग 4 billion से भी ज्यादा unique addresses को संभालता है। हर एक IPv4 address जो होता है, वह एक 32-bit integer का होता है, जो decimal notation में में चार numbers के रूप में दिखाई देता है, जिन्हे डॉट्स से अलग – अलग किया जाता है। और इसके हर नंबर का range 0 से 255 के बीच होता है। For example, एक IPv4 address “192.168.1.1” की तरह हो सकता है। यह जो addresses जो है वह दिखते तो decimal के form में है, लेकिन computers इन्हे हमेशा 0s और 1s के रूप में, यानि binary format में समझता है, जिससे communication बहुत आसान हो जाती है।

इसके Address Format को हमने diagram के जरिए समझाया है जो निचे दिया हुआ है –

IPv4 Address Format
IPv4 Address Format

Drawback of IPv4 in Hindi

  • Limited Address Space: समय के साथ बदलते हुए internet-connected devices की जरूरतों को IPv4 पूरा नहीं कर सकता है, क्योकि IPv4 के पास addresses की संख्या बहुत ही सीमित होती है।
  • Complex Configuration: इसकी configuration ज्यादातर DHCP या manual के हिसाब से करनी पड़ती है, जो टाइम और effort दोनों की लागत को बढ़ाता है, और इसमें गलतियां होने के chances भी बहुत होते है।
  • Less Efficient Routing: यह डाटा processing और routing को बहुत slow कर देता है क्योकि IPv4 का header structure काफी ज्यादा कठिन या complex होता है। जिसकी बजह से network performance affected होती है।
  • Fragmentation: IPv4 डाटा पैकेट्स को fragment करने की अनुमती देता है, data loss और corruption संभावना काफी हद तक बड़ा सकता है, और इसके अलाबा यह overall efficiency को भी प्रभाबित करता है।
  • Security Issues: इसमें किसी भी तरह से built-in सुरक्षा के features नहीं होते है, और जब तक हम additional security का उपयोग नहीं कर लेते तब तक, यह इसे cyber-attacks के लिए और भी ज्यादा sensitive बनाता है।

What is IPv6 in Hindi?

IPv6, यानी Internet Protocol version 6, आज के समय में Internet Protocol का सबसे नया version है। इसको समय के साथ Internet addresses की बढ़ती ज़रूरतों को पूरा करने के लिए बनाया गया है। साथ ही इस protocol को IPv4 के issues को समझने के लिए भी बनाया गया है। IPv6 का address space 128 bits का होता है, जो 340 undecillion unique addresses को समझता है। इसको December 1995 में पहली बार Engineering Task Force ने introduce किया था।

IPv6 को हम IPng (Internet Protocol next generation) कह सकते है, और यह complexity और efficiency मामले IPv4 से काफी ज्यादा बेहतर और अच्छा है। इसका format 8 hexadecimal numbers के रूप में होता है। जिसको colon (:) का उपयोग करके separated किया जाता है, और इसे 128 bits के 0s और 1s के रूप में भी लिखा जा सकता है। इस नए protocol का उपयोग करके हम अपने networking experiences काफी ज्यादा बेहतर बना सकते है।

इसके Address Format को भी हमने IPv4 की तरह नीचे diagram की सहायता से समझाया है –

IPv6 Address Format
IPv6 Address Format

Switching from IPv4 to IPv6 in Hindi

  1. Dual Stacking: इस तरह, devices एक साथ दोनों addresses यानि IPv4 और IPv6 का इस्तेमाल कर सकते है। इसकी सहायता से वह किसी भी version के network या devices से बात कर सकते है।
  2. Tunneling: यह तरीका IPv6 users को IPv4 network के ज़रिए डाटा भेजने की सुभिदा प्रदान करता है। ताकि वह किसी और दूसरे IPv6 users तक आसानी से पहुंच सके। उदहारण के लिए, जैसे – IPv6 traffic के लिए पुराने IPv4 system के ज़रिए एक “tunnel” बनाना।
  3. Network Address Translation (NAT): NAT अलग – अलग IP एड्रेस (IPv4 और IPv6) versions वाले devices को एक दूसरे से बात करने में सहायता करता है, क्योकि यह addresses को इस तरह से translate करता है की वो एक दूसरे को आसानी से समझ सके।

Difference Between IPv4 and IPv6 in Hindi

IPv4 IPv6
IPv4 की address length 32-bit की होती है। और IPv6 की address length 128-bit होती है।
यह 4.29×10⁹ का address space प्रदान करने की क्षमता रखता है। IPv6 का address space काफी ज्यादा बड़ा होता है, यह 3.4×10³⁸ तक का address space उत्पन्न करने की क्षमता रखता है।
इसके header fields की संख्या 12 नंबर की होती है। और इसके header fields की संख्या 8 नंबर की होती है।
IPv4, manual और DHCP address configuration को support करता है। जबकि IPv6, Auto को renumbering address configuration को support करता है।
इसके header filed की length 20-60 bytes होती है। और इसके header filed की length 40 bytes fixed होती है।
Sender और forwarding routers के द्वारा IP को टुकड़ो में बांटना। लेकिन IPv6 में IP को सिर्फ sender द्वारा टुकड़ो में बाँटा जाता है।
इसमें checksum fields उपस्थित होती है। इसमें checksum fields उपस्थित नहीं होती है।
इसमें system management के लिए SNMP protocol का उपयोग किया जाता है। लेकिन यह SNMP protocol को support नहीं करता है।
IPv4 में encryption और authentication की सुविधा प्रदान नहीं की गई है। जबकि इसमें encryption और authentication की सुविधा प्रदान की गई है।
IPv4 को हम IPv6 में आसानी से बदल सकते है। लेकिन सभी IPv6 को IPv4 में बदल नहीं सकते है।
IPv4 के address को 4 fields में बाँटा गया है, जिसे dot (.) की सहायता से अलग किया जाता है। और इसको 8 fieldsमें बाँटा गया है जिसे colon (:) की सहायता से अलग किया जाता है।
IPv4 के IP addresses को 5 अलग – अलग तरह के classes बाँटा गया है: Class A, Class B, Class C, Class D, और Class E. IPv6 के IP addresses को किसी भी तरह के class में नहीं बाँटा गया है।
Example of IPv4:  66.94.233.165 Example of IPv6: 2001:0000:3200:0db8:0063:0808:7879:ff00

What is the Difference Between IPv4 and IPv6 in Hindi?

IPv4 और IPv6, दोनों ही IP addresses है, जो की binary numbers में होते है। IPv4 में address एक 32-bit के binary numbers में होता है, जबकि IPv6 का address 128-bit के binary numbers में होता है। IPv4 addresses को dots की सहायता अलग किया जाता है, जबकि IPv6 address को colons की सहायता से अलग किया जाता है। इन दोनों ही IP addresses का उपयोग network से जुडी machines को पहचानने के लिए किया जाता है। आमतौर पर यह दोनों ही लगभग एक जैसे होते है, लेकिन इन दोनों का काम करने का तरीके में थोड़ा अंतर होता है।

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निवेदन : – हमें उम्मीद है की आपको हमारी यह ब्लॉग पोस्ट बेहद पसंद आई होगी। और इससे आपको IPv4 और IPv6 के बीच अंतर और IPv4, IPv6 क्या होता है यह भी जानने को मिला होगा। अगर आपको इस पोस्ट से सम्बंधित कोई भी समस्या हो या फिर आपको हमें कोई भी सुझाव देना हो तो आप हमें कमेंट के माध्यम से बता सकते हो।
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