Communication Protocols in IoT in Hindi – IoT में कम्युनिकेशन प्रोटोकॉल क्या है?

इस ब्लॉग पोस्ट मैं हम IoT में कम्युनिकेशन प्रोटोकॉल क्या है? और IoT में कम्युनिकेशन प्रोटोकॉल के प्रकार कोन – कोन से है ये पड़ेंगे। इसीलिए इस पोस्ट को अंत तक पड़े ताकि आप IoT में कम्युनिकेशन प्रोटोकॉल के बारे मैं गहराई से जान सके।

What is IoT (Internet of Things) – IoT क्या है ?

Internet of Things (IoT) का सबसे मुख्य purpose यह है कि एक इस प्रकार के ecosystem का निर्माण करना जो traditional computers से अलग, यानि अन्य advanced और smart devices की सहायता से एक interconnected दुनिया का स्वरुप दे। IoT का सबसे मुख्य काम उन सभी ऑब्जेक्ट्स और डिवाइसेस को एक दूसरे से जोड़ना है, जो पहले आइसोलेटेड थे, और जिनमे किसी भी प्रकार का automated communication संभव नहीं था। लेकिन अब, IoT की सहायता से, यह जो डिवाइस है वह एक नेटवर्क के मध्यम से data का Exchange करते हैं और एक Synchronized Environment को बनाते है।

इस technology के लिए communication protocols जो है वह एक मूल आधार की तरह काम करते हैं, जो Data Transfer को कई ज्यादा reliable, सुरक्षित, और efficient बनाते हैं। IoT devices की संख्या बहुत ज्यादा होने के कारण इन प्रोटोकॉल्स का selection कभी critical होता है, क्योंकि हर एक protocol का अपना खुद का specific architecture और use-case होता है।

चलिए, अब हम IoT में कम्युनिकेशन प्रोटोकॉल्स क्या होते है, यह कितने प्रकार के होते है, के बारे में ठीक से यानि deeply जानते है, आज के समय में IoT के विकास में काफी ज्यादा भूमिका निभाते है।

What is Communication Protocol in IoT in Hindi? – IoT में कम्युनिकेशन प्रोटोकॉल क्या है?

Communication Protocols एक ग्रुप होता है जो कई सारे rules के set और guidelines से मिल कर बना होता है, यह डाटा transmission के लिए कई सारी devices के बीच एक systematic और reliable communication established करते है। ये protocols जो होते है वह यह ensure करते हैं की ये सभी अलग-अलग डिवाइस, जो है वो different manufacturers के हो या अलग आर्किटेक्चर के, एक दूसरे के साथ comfortable, सुरक्षित, और reliable डाटा exchange कर सके। इसका primary goal यह है कि कम्युनिकेशन प्रोसेस efficient, error-free, और properly synchronized हो, जिससे networks और systems के बीच smooth interaction हो।

Types of IoT Communication Protocols in Hindi – IoT में कम्युनिकेशन प्रोटोकॉल के प्रकार

LPWAN

LPWAN का पूरा नाम Low Power Wide Area Network होता है। यह एक इस तरह की टेक्नोलॉजी होती है जिसको low power consumption और long-range communication के लिए डिज़ाइन या बनाया गया है, खाश तौर पर इसे IoT (Internet of Things) applications के लिए बनाया गया है। इसका उपयोग उन सभी devices के लिए होता है जो कई सारे छोटे – छोटे data packets को दूर तक भेजने का काम करते है, जैसे – smart agriculture sensors, smart healthcare sensors, asset tracking systems, और environmental monitoring devices आदि।

यह communication protocol जो होता `है वह battery-powered devices को कई सालों तक बिना किसी battery replace किए चलाने की संभावना प्रदान करती है। LPWAN technologies, जैसे – Sigfox और LoRa (Long Range), low cost और efficient connectivity प्रदान करती है। यह नेटवर्क unlicensed frequency bands में ऑपरेट करता है, जो इसको cellular technologies की तुलना में काफी ज्यादा सस्ता और accessible बनाता है।

Advantages of LPWAN – (LPWAN के लाभ):

  1. Long-Range Coverage: यह ग्रामीण (rural) और शहरी (urban) दोनों क्षेत्रों में काम करता है, और इसके अलाबा यह दूर के क्षेत्रों में भी coverage प्रदान करता है।
  2. Low Power Consumption: इसका उपयोग करने से किसी भी Devices को कई सालों तक battery replacement की ज़रुरत नहीं होती है।
  3. Cost-Effective: इस प्रोटोकॉल की Infrastructure और operational costs बहुत ही कम होती है, खास तौर पर तब जब large-scale पर deployment किया जा रहा हो।
  4. Scalability: यह communication protocol एक ही नेटवर्क में कई सारी devices को कुशलतापूर्वक (efficiently) manage कर सकता है।

Disadvantages of LPWAN – (LPWAN की हानियाँ):

  1. Limited Data Rates: यह प्रोटोकॉल High bandwidth या large data transmission के लिए suitable नहीं है।
  2. Latency Issues: इसमें Real-time applications के लिए latency जो है वो कभी – कभी काफी परेशानी खड़ी कर सकती है।
  3. Security Concerns: यह जो प्रोटोकॉल है उसमे unlicensed frequency bands में ऑपरेट करने की वजह से interference और सुरक्षा (security) threats हो सकते है।
  4. Restricted Interoperability: हर एक LPWAN technology का अपना खुद का एक अलग से protocol है, जो interoperability में limitation create कर सकता है।

LoRaWAN

LoRaWAN (Low Power Wide Area Network) जो है वह एक wireless communication protocol होता है जिसको इस लिए डिज़ाइन या बनाया गया है ताकि इस की सहायता से IoT (Internet of Things) उपकरणों (devices) को काफी लम्बी दूरी तक आसानी connect किया जा सके, खास कर उन environments में जंहा पर low power consumption बहुत ज़रूरी होता है।

यह प्रोटोकॉल smart cities, agriculture, और healthcare आदि जैसे applications में काफी ज्यादा उपयोग किया जाता है, जंहा devices को high data rate या frequent recharging की आवश्यकता नहीं होती है। LoRaWAN devices जो होती है उनको low power पर भी काफी समय तक चलाया जा सकता है, और यह काफी दूरी जैसे – rural areas में 2 से 15 km तक, और urban areas में 5 km तक काम करते है।

Advantages of LoRaWAN – (LoRaWAN के लाभ):

  1. Long-range communication: यह सिर्फ 15 km की दूरी तक ही काम कर सकता है, जो outdoor और remote applications के लिए काफी ज्यादा perfect और उपयोगी हो सकता है।
  2. Low power consumption: इससे जुडी IoT devices को कई सालो तक छोटी battery से चलाया जा सकाता है।
  3. Scalability: ये जो LoRaWAN communication protocol होता है वह काफी सारी devices को support करता है, जो smart city projects और large-scale IoT deployments के लिए बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण होते है।
  4. Security: यह प्रोटोकॉल end-to-end encryption प्रदान करता है, जो डाटा की integrity और privacy को ensure करता है।

Disadvantages of LoRaWAN – (LoRaWAN की हानियाँ):

  1. Low data rate: यह protocol सिर्फ छोटे – छोटे अमाउंट के डाटा जैसे – sensor readings भेजने के लिए suitable है, high bandwidth applications में यह काम नहीं करता है।
  2. Limited real-time capabilities: इस प्रोटोकॉल में Low data rate और network design नहीं होता है, जिस की वजह से यह real-time data processing के लिए ideal नहीं है।
  3. Network dependency: LoRaWAN communication protocol, specific gateways और infrastructure पर निर्भर रहता है, जो उन areas में सीमित रूप में हो सकती है जंहा पर ऐसे setups उपस्थित नहीं है।
  4. Interference risks: यह unlicensed ISM band में ऑपरेट करता है, जहाँ दूसरे devices की सहायता से interference हो सकता है।

LoRaWAN का agriculture के इलाके में काफी ज्यादा उपयोग हो रहा है, जैसे कि precision farming में, क्योकि यह कम्युनिकेशन प्रोटोकॉल जो होता है वह low cost और long battery life प्रदान करता है। ऐसे कई सारे sensors है जो LoRaWAN का उपयोग करते है, साथ ही वे remotely data भी collect करते है, जैसे – temperature, humidity, और soil condition, जो farming operations को optimize करने में काफी जयदा सहायक या मददगार होते है।

Zigbee

Zigbee जो है वह एक wireless communication protocol होता है जिसको main minimal-range, low-power devices के लिए design या बनाया गया है। इसका उपयोग smart home, Health Care, और Industrial Automation उपकरणों में किया जाता है। Zigbee devices एक नेटवर्क को बनती है जिसमे router, coordinator और end devices शामिल होती हैं। इस protocol का मुख्य focus low power consumption और simple network setup पर होता है, जिससे devices को आसानी से मॉनिटर और control किया जाता है।

Advantages of Zigbee – (Zigbee के लाभ):

  1. Low Power Consumption: Zigbee devices जो होती है वह बहुत ही कम power consume करती है, इसी लिए उनको long battery life प्रदान कराइ जाती है।
  2. Simple Setup: Zigbee का जो networks setup होता है वह बहुत ही सरल और आसान होता है, और इसमें devices को आसानी (easily) से add या remove किया जा सकता है।
  3. Scalability: Zigbee network को scale करना बहुत ही आसान होता है, आप आसानी से और बिना किसी परेशानी के इस network में devices को add कर सकते है।
  4. Cost-Effective: Zigbee का implementation अपेक्षाकृत (relatively) low-cost होता है और यह long-lasting batteries का उपयोग करता है, जो overall cost को काफी reduce करता है।

Disadvantages of Zigbee – (Zigbee की हानियाँ):

  1. Limited Range: ये जो Zigbee कम्युनिकेशन प्रोटोकॉल है उस का coverage area एक सीमित रूप या limited form में होता है, जो outdoor applications में थोड़ा सा problematic साबित हो सकता है।
  2. Low Data Transmission Rate: इस प्रोटोकॉल का डाटा transfer rate भी अपेक्षाकृत (comparatively) low होता है, जो high-speed डाटा ट्रांसमिशन के लिए बिल्कुल भी उचित (suitable) नहीं होता है।
  3. Security Concerns: Zigbee जो security level जो है वह Wi-Fi जैसे सुरक्षित (secure) protocols के मुकाबले थोड़ा कम होता है।
  4. High Replacement Costs: अगर किसी कारण से Zigbee-compatible appliances में कोई समस्या या issue हो जाता है, तो उन्हें बदलने या replace करने के लिए काफी ज्यादा खर्चा हो सकता है।

Z-Wave

Z-Wave भी Zigbee की तरह एक wireless communication protocol होता है, यह प्रोटोकॉल ज्यादातर Zigbee की तरह ही काम करता है यानि इसको भी primarily home automation के लिए ही बनाया गया है। लेकिन यह प्रोटोकॉल sub-1 GHz frequencies पर काम करता है, जो interference को minimize करता है और lighting controls, smart locks, के अलाबा और भी कई दूसरी home automation devices के लिए suitable है। Z-Wave एक mesh network architecture का उपयोग करता है, जो devices के बीच messages को Forword और repeat करने का काम करता है।

Advantages of Z-Wave – (Z-Wave के लाभ):

  1. Low Power Consumption: Z-Wave devices काफी कम एनर्जी खर्च करते है यानि यह काफी energy-efficient होते है, जो इन्हे battery-operated devices के लिए ideal बनाता है।
  2. Mesh Networking: इसमें Devices एक दूसरे के जरिए signal transmit करते है, जिससे नेटवर्क का range और coverage improve हॉता है।
  3. Reduced Interference: यह प्रोटोकॉल Sub-GHz frequency पर काम करता है जिस की वजह से Wi-Fi और 2.4 GHz devices का interference काफी कम होता है।
  4. High Interoperability: Z-Wave प्रोटोकॉल जो है वह certification program ensure करता है ताकि multiple manufacturers के प्रोडक्ट्स जो है वह एक साथ काम कर सके।

Disadvantages of Z-Wave – (Z-Wave की हानियाँ):

  1. Limited Bandwidth: Z-Wave की bandwidth अपेक्षाकृत (relatively) कम होती है, जिसकी वजह से यह उच्य डाटा rate applications के लिए unsuitable हो जाता है।
  2. Proprietary Nature: यह एक proprietary protocol है, जो दूसरे प्रोटोकॉल्स जैसे – Zigbee के मुकाबले (comparison) में बहुत ही कम flexibility प्रदान करता है।
  3. Cost: Z-Wave devices और hubs की जो कीमत है वह medium से लेकर high हो सकती है, जो budget-conscious उपयोगकर्ताओं के लिए चुनौतीपूर्ण (challenging) साबित हो सकता है।
  4. Limited Global Frequency: Z-Wave के regional frequency bands अलग – अलग तरह की होती है, जो global compatibility में समस्या यानि issues create कर सकते है।

Bluetooth & BLE (Bluetooth Low Energy)

Bluetooth, का short-range wireless communication के लिए उपयोग किया जाता है, जो काफी बेहतर और कई ज्यादा bandwidth और data rate प्रदान करता है। यह speakers, headphones, और car audio आदि सिस्टम्स जैसी devices के लिए बिल्कुल perfect है। इसका उपयोग high quality वाले ऑडियो स्ट्रीमिंग और वायरलेस परिधीय (Wireless Peripheral) उपकरण जैसे – Keyboard, Mouse आदि के लिए होता है। इसकी data transfer speed बहुत ज्यादा होने के साथ – साथ बेहतरीन होती है, लेकिन इनका power consumption भी बहुत ज्यादा होता है।

BLE का पूरा नाम Bluetooth Low Energy होता है, यह Bluetooth technology का ही एक variant है जो energy efficiency पर focus करता है। इसे इस लिए बनाया गया है ताकि इसकी सहायता से Health Monitors, Wearables, Fitness Trackers आदि जैसी IoT devices को आसानी से मॉनिटर किया जा सके, यंहा पर low power consumption जरूर होती है। BLE में latency कम होती है, और यह डिवाइस को काफी ज्यादा समय तक battery life के साथ operate करने में मदद करता है।

Advantages of Bluetooth & BLE – (Bluetooth & BLE के लाभ):

  1. Wireless Convenience: Bluetooth और BLE दोनों को ही communication करने के लिए किसी भी तरह के cable की जरूरत नहीं होती है, क्योकि यह short-range communication करने के लिए wireless connectivity प्रदान (Provide) करते है।
  2. Low Power Consumption (BLE): BLE जो है वह बहुत ही कम power खर्च करता है यानि यह power-efficient होता है, जो wearables और IoT devices के लिए बिल्कुल perfect होता है, क्योकि यह छोटी सी बैटरी पर ही काफी लम्बे समय तक चल सकता है।
  3. Wide Compatibility: Bluetooth और BLE जो है वह हर modern device के साथ compatible होते है, जो easy pairing और connectivity को संभब (possible) बनाता है।
  4. Diverse Use Cases: Bluetooth को audio devices, file transfer और gaming करते समय उपयोग किया जाता है, जबकि BLE smart home, fitness trackers, और health monitors आदि जैसे applications के लिए बिल्कुल perfect है।

Disadvantages of Bluetooth & BLE – (Bluetooth & BLE की हानियाँ):

  1. Limited Range: Classic Bluetooth जो होता है उसकी range लगभग 10-30 meters होती है, जबकि BLE जो है वह open areas में भी maximum 150 meters तक का range प्रदान कराता है।
  2. Slower Data Rates (BLE): BLE जो है उसकी डट ट्रान्सफर करने की speed काफी low होती है (1 Mbps तक), जो high-bandwidth applications के लिए किसी भी तरह से suitable नहीं है।
  3. Security Risks: अगर Bluetooth connections में secure pairing का उपयोग नहीं किया जाये तो इसको हमेशा ही hacking या unauthorized access का रिस्क होता है, क्योकि बिना secure pairing के इसे हैक करना बहुत आसान हो जाता है।
  4. Interference: Bluetooth और BLE दोनों ही 2.4 GHz फ़्रीक्वेंसी बैंड पर operate करते हैं, जिसकी वजह से भीड़-भाड़ वाले वातावरण में signal interference होने के चान्सेस काफी हद तक बाद जाते है।

MQTT (Message Queuing Telemetry Transport)

MQTT एक lightweight messaging protocol है और इसका पूरा नाम Message Queuing Telemetry Transport है। इस प्रोटोकॉल को constricted devices और low-bandwidth networks के लिए design किया गया है। इस प्रोटोकॉल का काम publish-subscribe model के ज़रीए अलग – अलग डिवाइसेस के बीच एक efficient communication को सम्भालने का होता है। यह प्रोटोकॉल TCP/IP प्रोटोकॉल पर काम करता है और यह smart homes, industrial automation, और asset tracking आदि जैसे कई क्षेत्रों में उपयोग किया जाता है।

Advantages of MQTT – (MQTT के लाभ):

  1. Low Bandwidth Usage: इस प्रोटोकॉल का design lightweight होता है जिस की वजह से इसमें bandwidth कम से कम खर्च होती है।
  2. Reliable in Weak Networks: यह हमेशा Intermittent या weak नेटवर्क कनेक्शन में भी communication reliable बना रहता है।
  3. QoS (Quality of Service): यह हमेशा message भेजने या delivery करने के लिए अलग – अलग तरह के QoS levels का उपयोग करता है जिससे सहायता से इसमें message delivery की reliability options काफी हद तक enhance हो जाते है।
  4. Flexible Communication: Real-time streaming और scalable आदि जैसे IoT applications के लिए यह सबसे आसान और best ऑप्शन होता है।

Disadvantages of MQTT – (MQTT की हानियाँ):

  1. Limited Security: इस प्रोटोकॉल में additional security को implement करना बहुत ज्यादा जरूरी होता है क्योकि इसमें पहले से किसी भी तरह Built-in encryption और authentication उपस्थित नहीं होता है।
  2. Not Real-Time Optimized: Real-time या low latency वाले applications के लिए यह Affected form में किसी भी तरह से उपयोगी नहीं होता है इसके अलाबा यह कभी भी desired performance standards को पूर्ण नहीं कर पाता है।
  3. High Traffic Management Issues: अगर इसके जरिए High-frequency messages को पुब्लिस किया जाता है तो इससे network traffic significantly बाद जाता है, जिससे नेटवर्क bandwidth पर additional load पैदा हो जाता है और इसकी वजह से overall system performance पर भी impact पद सकता है।
  4. Customization Complexity: इसमें Secure और optimized utilization ensure करने के लिए ब्रोकर्स और क्लाइंट्स दोनों के बीच में एक explicit configuration की आवश्यता होती है।

CoAP

CoAP को especially low power वाले devices के लिए डिज़ाइन किया गया है यह UDP पर काम करता है। ये जो प्रोटोकॉल है वह हमेशा ही RESTful architecture को follow करता है, जो बिल्कुल HTTP के तरह होता है, लेकिन फिर भी इस प्रोटोकॉल को इस लिए डिज़ाइन किया गया है क्योकि इसकी सहायता से resource-constrained environments का ध्यान रखा जा सके। जब भी Healthcare monitoring और industrial आदि IoT applications को बनाया जाता है तो उनमे इसका extensive use किया जाता है।

Advantages of CoAP – (CoAP के लाभ):

  1. Efficient Bandwidth Utilization: CoAP जब भी डाटा पैकेट्स पर काम करता है तो वह हमेशा small data packets का ही उपयोग करता है, जिसकी वजह से यह limited bandwidth वाले नेटवर्क्स के लिए पूरी तरह से perfect होता है।
  2. Lightweight and Resource-Friendly: CoAP का जो structure होता है वह simplified और compressed होता है, जो low-memory devices और energy-constrained environments के लिए इसको पूरी तरह suitable बनता है।
  3. Supports Resource Discovery: इस प्रोटोकॉल में जो Devices शामिल होती है वह अपने resources को dynamically discover और शेयर कर सकते है, जो IoT के environments में smooth integration को बनाए रखने के लिए बहुत जरूरी होता है।
  4. Low Latency: यह प्रोटोकॉल UDP के ऊपर काम करता है क्योकि इसकी वजह से CoAP का जो response टाइम होता है वह fast हो जाता है, जो उन applications के लिए बहुत ज्यादा important होता है जो real-time पर काम करते है।

Disadvantages of CoAP – (CoAP की हानियाँ):

  1. Limited Security Features: CoAP जो है वह हमेशा DTLS (Datagram Transport Layer Security) की तरह basic सिक्योरिटी mechanisms प्रदान करता है, लेकिन यह DTLS की तरह high-end encryption और security protocols को सपोर्ट नहीं करता है जो critical data transmissions के लिए बहुत ज़रूरी हो सकता है।
  2. Unsuitable for High-Speed Data Transfer: CoAP, High-speed या लार्ज डाटा transfer environments के लिए सही प्रोटोकॉल नहीं होता है, क्योकि यह lightweight design और UDP का उपयोग करते है जो इसको सिर्फ low-data-rate applications के लिए suitable बनाता है।
  3. Connectionless Nature: CoAP, UDP-based होता है जिसके कारण यह connection reliability ensure नहीं कर पाता है, जो नेटवर्क congestion और पैकेट लॉस के scenarios में किसी भी तरह का challenge create कर सकता है।

HTTP/HTTPS (Hypertext Transfer Protocol)

HTTP और HTTPS दोनों ही web-based IoT applications में बराबर उपयोग होते है, जिसमे devices और cloud systems के बीच communication करने के लिए request-response model का उपयोग किया जाता है, HTTP जो होता है वह TCP प्रोटोकॉल पर आधारित (based) होता है, जो हमेशा reliable data transmission सुनिश्चित करता है, और security प्रदान (provide) करने के लिए HTTPS SSL/TLS encryption का उपयोग करते है।

Advantages of HTTP/HTTPS – (HTTP/HTTPS के लाभ):

  1. Widely Supported: ये जो प्रोटोकॉल है वह तरह की devices और platforms को support करते है, जो integration को काफी आसान बना देता है।
  2. Flexible Data Formats: ये दोनों ही प्रोटोकॉल JSON और XML आदि जैसे common formats को सपोर्ट करते है, जो डाटा एक्सचेंज को आसान और फ्लेक्सिबल बनता है।
  3. Secure with HTTPS: यह data confidentiality और security सुनिश्चित (ensure) करने के लिए SSL/TLS encryption का उपयोग करती है, जो बहुत ही आसान होता है।
  4. Scalable: HTTP/HTTPS दोनों large systems और cloud-based applications के लिए scalable है, और high-volume traffic handle कर सकता है।

Disadvantages of HTTP/HTTPS – (HTTP/HTTPS की हानियाँ):

  1. High Bandwidth Consumption: यह हमेशा high bandwidth consume करता है जिसके कारण यह low-bandwidth networks के लिए inefficient साबित हो सकता है।
  2. Inefficient for Low-Power Devices: यह दोनों ही protocols, low-power devices के लिए suitable नहीं है क्योकि यह High overhead और बहुत ज्यादा power consumption करते है।
  3. Latency Issues: TCP connection का जो setup होता है उसमे बहुत ज्यादा latency होती है, जिसकी वजह से यह real-time applications के लिए समस्या खड़ी कर कर सकते है।
  4. Security Risks in HTTP: HTTP जो है वह बहुत कमजोर होता है यानि इसे कोई भी हैकर आसानी से हैक कर सकता है। इसी कमी के कारण यह data को attacks के लिए vulnerable बनाता है, इसी वजह से HTTPS का उपयोग किया जाता है।

DDS

DDS (Data Distribution Service) प्रोटोकॉल एक प्रकार का middleware protocol है जो publish-subscribe communication mechanism का उपयोग करके real-time systems पर काम करता है। इस प्रोटोकॉल autonomous vehicles, industrial automation, aerospace, और defense आदि जैसे mission-critical applications के लिए बनाया गया है, जहाँ पर low-latency, high-reliability, और deterministic communication की जरूरत पड़ती है।

Advantages of DDS – (DDS के लाभ):

  1. Excellent Scalability: इस प्रोटोकॉल का architecture highly scalable होता है, जो large-scale distributed सिस्टम्स में हजार से भी ज्यादा publishers और subscribers के साथ मिलकर भी efficiently काम कर सकता है।
  2. Real-Time Data Distribution: इसको real-time systems के लिए बनाया गया है, जंहा पर low-latency और high-throughput कम्युनिकेशन काफी ज्यादा ज़रूरी होता है।
  3. Quality of Service (QoS) Options: DDS में सिस्टम की reliability, latency, bandwidth usage, और durability को आसानी सें ऑप्टिमाइज़ किया जा सकता है क्योकि इसमें QoS model highly customizable होता है।
  4. Fault Tolerance and Reliability: DDS के पास built-in और fault-tolerance mechanisms होते है, जो यह सुनिश्चित करते है कि data loss कम से कम हो और सिस्टम (system) reliability high बनी रहे।

Disadvantages of DDS – (DDS की हानियाँ):

  1. High Complexity: कभी – कभी DDS का implementation और configuration काफी हद तक complex हो सकता है, जिसकी वजह से particular large-scale systems जो होता है उसमें multiple QoS parameters को manage करना पड़ता है।
  2. Computational Demands: DDS जो होता है उसे real-time data distribution को सुनिश्चित (ensure) करने के लिए higher computational resources की आवश्यकता होती है, जो resource-limited systems के लिए challenge create करता है।
  3. Requires Specialized Expertise: इस प्रोटोकॉल को effective deploy और maintenance के लिए special expertise और knowledge की जरूरत होती है, जो system integration को time consumption बना सकता है।
  4. High Resource Overhead: DDS का उपयोग करने से additional memory और processing power consume होती है, जो lightweight IoT applications के लिए less suitable हो सकता है।

AMQP

AMQP (Advanced Message Queuing Protocol) एक open standard प्रोटोकॉल होता है जो हमेशा reliable message delivery और message queuing पर फोकस करता है। यह प्रोटोकॉल secure messaging, interoperability, और fault tolerance प्रदान करता है, जो इसको सिस्टम के लिए suitable बनाते है जैसे – banking, finance, और enterprise applications आदि।

Advantages of AMQP – (AMQP के लाभ):

  1. Robust Message Queuing: Reliable message queuing और delivery को सुनिश्चित (ensure) करना बहुत आसान होता है।
  2. Security Features: Encryption और authentication से डाटा को secure करता है।
  3. Fault Tolerance: Failures के case में automatic message requeue और system recovery ensure करता है।
  4. Interoperability: यह Diverse platforms के बीच seamless कम्युनिकेशन को enable करता है।

Disadvantages of AMQP – (AMQP की हानियाँ):

  1. High Resource Demand: Large-scale सिस्टम में high memory और CPU usage हो सकता है।
  2. Complex Configuration: Configuration काफी complex हो सकता है, especially तब जब large systems होते है।
  3. Latency Overhead: High reliability के चलते कभी – कभी latency का थोड़ा overhead हो सकता है।
  4. Protocol Overhead: Feature-rich protocol होने की वजह से सिस्टम की performance पर अशर पड़ सकता है।

निवेदन:- हमें आशा है की आपको यह पोस्ट बेहद पसंद आई होगी और अब तक तो आप IoT में कम्युनिकेशन प्रोटोकॉल क्या है? और IoT में कम्युनिकेशन प्रोटोकॉल के प्रकार कोन – कोन से है? ये जान चुके होंगे। लेकिन फिर भी आपको इस ब्लॉग पोस्ट या इस वेबसाइट से सम्बंधित कोई भी समस्या हो या फिर आपको हमें कोई सुझाव देना हो तो आप हमें कमेंट के माध्यम से बता सकते हो।

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