Kernel किसी भी सिस्टम का एक बहुत ही ज्यादा महत्वपूर्ण हिस्सा है जो आपके कंप्यूटर, स्मार्टफोन, या फिर किसी और दूसरी मॉडर्न इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस को चालू करते हैं, तो उस वक्त उस डिवाइस में hardware और software दोनों साथ मिलकर काम करते हैं ताकि आपको एक नेचुरल और आसान अनुभव देखने को मिले।
ये जो प्रक्रियाए होती है उन सभी प्रक्रियाओं का एक सबसे मुख्य हिस्सा kernel होता है, जो operating system (OS) का सबसे महत्वपूर्ण भाग होता है। तो आज के इस ब्लॉग में, हम जानेंगे कि kernel क्या है, इसके प्रकार, इसके काम, और यह आपके डिवाइस के लिए इतना जरूरी क्यों है।
टॉपिक
What is Kernel in Operating System in Hindi – kernel क्या है?
कर्नेल जो है वह किसी भी Operating System का एक दिल होता है। यह हार्डवेयर (hardware) और सॉफ्टवेयर (software) के बीच एक ब्रिज बनाता है।
Kernel जो होता है वह कंप्यूटर के सभी रिसोर्सेज (resources) को मैनेज करता है, जैसे मेमोरी, प्रोसेसर, और उससे जुडी हुई सभी डिवाइसेस ।
इसके अलाबा यह भी सुनिश्चित करता है कि ऑपरेटिंग सिस्टम में चल रहे सभी प्रोग्राम (programs) एक साथ चले सके, वो भी बिना किसी रुकावट के।
आप चाहे तो कर्नेल को एक मैनेजर (manager) की तरह समझ सकते हैं। जिस तरह से एक मैनेजर किसी टीम को सही तरीके से चलाता है, ठीक उसी तरह कर्नेल भी कंप्यूटर को चलाता है।
जब आप कंप्यूटर चालू करते हैं, तो सबसे पहले कर्नेल लोड (load) होता है और यह हार समय मेमोरी में उपस्थित रहता है। साथ यह बाकी के सभी प्रोग्राम्स और प्रोसेसेस (processes) को कंट्रोल करने का काम करता है।
आसान शब्दों में, कर्नेल ऑपरेटिंग सिस्टम का एक ऐसा हिस्सा है जो आपके कंप्यूटर और स्मार्ट फ़ोन को सही तरीके से चलाने में मदद करता है। अगर आपके कंप्यूटर या मोबाइल फ़ोन में कर्नेल उपस्थित नहीं होता है तो वो काम नहीं कर सकते।

Key Functions of a Kernel in Hindi – कर्नेल के प्रमुख कार्य
Kernel ऑपरेटिंग सिस्टम को सही तरीके से चलाने के लिए कई अलग – अलग महत्वपूर्ण काम करता है। यह सिस्टम को सुरक्षित, स्टेबल, और तेज (efficient) बनाए रखने में सहायता करता है। यहाँ पर कर्नल के कुछ मुख्य कामो के बारे में बताया गया हैं:
1. Process Management
Kernel का काम यह देखना होता है कि सिस्टम जो प्रोसेस यानि प्रोग्राम्स चल रहे है वह सभी ठीक तरह से काम तो कर रहे है या फिर नहीं। इसके अलाबा कर्नेल यह तय करता है कि किस प्रोसेस को कितना CPU टाइम मिलेगा और कौन-सा काम सबसे पहले होगा। साथ ही, यह भी ध्यान रखता है कि एक प्रोसेस किसी दूसरे के काम में रुकावट या परेशानी खड़ी न करे।
कर्नेल प्रोसेसेस को शुरू करता है, बंद करता है, और उनके बीच संबंध भी बनाए रखता है। साथ ही यह भी सुनिश्चित करता है कि सिस्टम में चल रही सभी प्रोसेसेस (Processes) बिना रुके अच्छी तरह से चलते रहें।
इन सभी के अलाबा, कर्नेल (Kernel) यह भी तय करता है कि किस प्रोसेस (Process) को पहले CPU की जरूरत है और किसे बाद में, ताकि सिस्टम (System) बिना किसी परेशानी के सही तरीके से चलता रहे।
2. Memory Management
kernel सिस्टम की मेमोरी को मैनेज करने का काम करता है। यह सिस्टम में चल रही प्रक्रियाओ के लिए मेमोरी स्पेस को allocate और deallocate करने का काम करता है।
कर्नेल काम यह सुनिश्चित करना भी होता है कि एक प्रोसेस किसी दूसरी प्रोसेस की मेमोरी को एक्सेस न कर सके। इसकी सहायता से सिस्टम क्रैश और डेटा करप्शन आदि जैसी समस्याओं से बचा जाता है।
इसके अलावा, कर्नेल जो है वह मेमोरी की उपलब्धता और उपयोग को भी ऑप्टिमाइज़ करने का काम करता है ताकि सिस्टम स्मूथली और efficiently चल सके। साथ यह वर्चुअल मेमोरी और फिजिकल मेमोरी दोनों के बीच बैलेंस भी बनाए रखता है।
सरल शब्दों में कहे तो, कर्नेल हमेशा यह ध्यान रखता है कि सिस्टम में चल रही हर एक प्रक्रिया को उनकी जरूरत के हिसाब से मेमोरी मिले और कोई भी प्रक्रिया किसी दूसरी प्रक्रिया की मेमोरी में दखल न दे। इससे कंप्यूटर सिस्टम हमेशा stable और सुरक्षित रहता है।
3. Device Management
कर्नेल (Kernel), हार्डवेयर डिवाइसों को डिवाइस ड्राइवर्स की सहायता से कंट्रोल करता है। साथ ही यह सुनिश्चित करता है कि डिवाइसों और एप्लिकेशन्स के बीच डेटा हमेशा सही तरीके से आदान-प्रदान (Exchange) हो।
हार्डवेयर में जितनी भी कॉम्प्लेक्स जानकारी होती है उनको Kernel छुपा देता है, जिसकी वजह से एप्लिकेशन्स को कभी भी हार्डवेयर की जानकारी को समझने की जरूरत नहीं पड़ती। यह सिस्टम को काफी ज्यादा आसान और फ़ास्ट बनाता है।
इसके अलावा, कर्नेल हमेशा यह भी देखता रहता है कि मेमोरी, प्रोसेसिंग, और स्टोरेज आदि जैसे रिसोर्सेज का सही तरीके से उपयोग तो हो रहे हैं। यह भी देखता रहता है कि सिस्टम से जुड़े हुए सभी डिवाइस और एप्लिकेशन्स बिना किसी परेशानी के एक साथ मिलकर काम करते रहे।
आसान भाषा में, कर्नेल सिस्टम का एक ऐसा हिस्सा होता है जो सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर दोनों के बीच एक मध्यस्थ (Mediator) की तरह काम करता है।
4. File System Management
Kernel जो है वह फ़ाइलों और डायरेक्टरीज़ का Management करता है, जिसमें रीडिंग, राइटिंग और डेटा ऑर्गनाइज़ेशन आदि जैसी प्रक्रियाएँ शामिल होती हैं। यह फ़ाइल एलोकेशन, रिट्रीवल और स्टोरेज एफिशिएंसी को बेहतर बनाकर सिस्टम के परफॉर्मेंस को काफी ज्यादा तेज़ और स्मूथ बनाए रखता है।
इसके अलाबा, कर्नेल access permissions को लागू करता है ताकि सिस्टम में आने वाले किसी अनऑथराइज़्ड एक्सेस को रोका जा सके और डेटा सिक्योरिटी को बनाए रखे। यही नहीं ये एरर हैंडलिंग मैकेनिज़्म, बैकअप सपोर्ट और फ़ाइल सिस्टम consistency checks के ज़रिए डेटा इंटिग्रिटी को बनाए रखने में मदद करता है।
आसान भाषा में कहे तो, कर्नेल यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी सिस्टम बिना किसी परेशानी के चलता रहे और डेटा हमेशा सुरक्षित और व्यवस्थित बना रहे।
5. Security and Access Control
कर्नेल हमेशा सिस्टम की सुरक्षा करता रहता है। साथ ही यह सुनिश्चित करता है कि सिस्टम में केवल सही यूजर और processes ही जरूरी resources तक पहुंच सकें।
यह यूजर permissions को मैनेज करता है और हमेशा डाटा को बिना किसी अनुमति वाले यूजर को एक्सेस करने से रोकता है। साथ ही, यह viruses और अन्य threats को रोककर सिस्टम को सुरक्षित और सही तरीके से चलाता है।
6. Networking
कर्नेल नेटवर्क कम्युनिकेशन को संभालने का काम करता है और डाटा पैकेट्स को सही तरीके से भेजने और प्राप्त करने में सिस्टम की सहायता करता है। यह TCP/IP protocols, routing, firewall आदि की settings को मैनेज करने का काम करता है ताकि हमेशा डाटा का ट्रांसफर सुरक्षित और आसान तरीके से हो।
इसके अलाबा, यह bandwidth और network interfaces को कंट्रोल करता है, जिससे devices बिना किसी रुकावट के एक दूसरे से जुड़ सकें।
Types of Kernels in Hindi – कर्नेल के प्रकार
Kernels को उनके डिज़ाइन और architecture के आधार पर विभिन्न प्रकारों में Classified किया जाता है। इसके प्रत्येक प्रकार के अपने फायदे और नुकसान होते हैं, जो सिस्टम की आवश्यकताओं पर निर्भर करते हैं। जिनको हमने अपनी आसान भाषा में परिभाषित किया है:
1. Monolithic Kernel
Monolithic Kernel जो है वह एक ऐसा स्ट्रक्चर है जिसमें ऑपरेटिंग सिस्टम की सभी सेवाएँ जैसे कि प्रोसेस मैनेजमेंट, मेमोरी मैनेजमेंट, डिवाइस ड्राइवर, फाइल सिस्टम आदि जैसे सभी ऑपरेशन kernel space में ही चलते हैं। इसका यह मतलब है, कि पूरा कर्नेल हमेशा एक ही एड्रेस स्पेस में काम करता है, और इसके सभी Component सीधे आपस में एक दूसरे कम्युनिकेट करते हैं।
Advantages – फायदे
- इसमें सभी components डायरेक्टली एक दूसरे के साथ कम्युनिकेट करते हैं, जिससे processing speed काफी हद तक तेज़ होती है।
- क्योकि system calls को हमेशा कर्नेल में ही प्रोसेस किया जाता है, इसलिए इसकी मदद से execution टाइम भी कम लगता है।
- इसमें बिना किसी अतिरिक्त layer के, हार्डवेयर का ज्यादा से उपयोग किया जा सकता है।
Disadvantages – नुक़साम
- इसमें सिस्टम की सभी जरूरी सेवाएँ होती हैं, जिसकी वजह से इसका साइज बढ़ जाता है और फिर इससे यह कम modular हो जाता है।
- अगर किसी वजह से कर्नेल के किसी भी एक हिस्से में कोई गड़बड़ी होती है, तो इसकी वजह से पूरा ऑपरेटिंग सिस्टम crash हो सकता है।
- इसमें हमेशा सबकुछ एक ही स्ट्रक्चर में integrated होता है जिसके कारण, इसको मेन्टेन करना और upgrade करना बहुत ही ज्यादा कठिन हो सकता है।
Use of Monolithic Kernel Hindi? – मोनोलिथिक कर्नेल का इस्तेमाल?
मोनोलिथिक कर्नेल का इस्तेमाल हमेशा उन सिस्टम्स में किया जाता है जहां पर सिस्टम की स्पीड और performance काफी ज्यादा ज़रूरी होती है। खासकर, supercomputers, high-performance servers, और embedded systems आदि में इसे काफी ज्यादा Priority दी जाती है।
Example of Monolithic Kernel:
- Linux
- Unix
हालांकि, अब सिक्योरिटी और modularity की जरूरत बढ़ रही है जिसके कारण लोग, अब आधुनिक ऑपरेटिंग सिस्टम जैसे microkernel या hybrid kernel की ओर बढ़ रहे हैं। लेकिन अगर लोगो को फ़ास्ट प्रोसेसिंग और low latency चाहिए, तो मोनोलिथिक कर्नेल ही एक बेहतरीन विकल्प माना जाता है।
2. Micro Kernel
माइक्रोकर्नेल (Microkernel) जो होता है वह सिस्टम के कोर का साइज उसकी जरूरत के हिसाब रखता है, जहां पर सिर्फ आवश्यक फ़ंक्शंस, जैसे Memory Management और Process Scheduling, आदि सभी Kernel Space में चलते हैं। बाकि के सभी फंक्शन User Space में Independent प्रक्रियाओं के रूप में कार्य करते हैं।
Advantages – फायदे
- इसे बिना किसी परेशानी के यानि आसानी से Extend और कस्टमाइज़ किया जा सकता है।
- छोटा Codebase होने के कारण Debugging और अपडेट करना आसान होता है।
- अगर किसी कारण से कोई User-Space Service फेल होती है, तो पूरा सिस्टम क्रैश नहीं होता।
Disadvantages – नुक़साम
- Kernel Space और User Space के बीच बार-बार कम्युनिकेशन होने के कारण से सिस्टम का परफॉरमेंस धीमा हो सकता है।
- प्रभावी Inter-Process Communication (IPC) को सुनिश्चित करने के लिए सावधानीपूर्वक डिज़ाइन की आवश्यकता होती है।
Example of Microkernel:
- Mach
- MINIX
- QNX
- L4
3. Hybrid Kernel
हाइब्रिड कर्नेल, जो होता है वह मोनोलीथिक और माइक्रो दोनों कर्नेल की विशेषताओं को एक साथ जोड़ने का काम करता है। यह मोनोलीथिक कर्नेल की गति और दक्षता के साथ-साथ माइक्रो कर्नेल की मॉड्यूलरिटी और स्थिरता को भी बनाए रखता है।
Advantages – फायदे
- यह माइक्रो कर्नेल की तुलना में काफी ज्यादा तेज़ होता है क्योकि इसमें काफी कम Context Switches उपस्थित होते है।
- Kernel के जरूरी Components को अलग-अलग Protection Domains में रखता है जिससे सिस्टम क्रैश होने की सम्भाबना कम हो जाती हैं।
- ऑपरेटिंग सिस्टम की सेवाओं को बिना किसी संपूर्ण सिस्टम को प्रभावित किए जोड़ा या हटाया जा सकता है।
- माइक्रो कर्नेल की तुलना में काफी ज्यादा में Device Drivers को एक साथ सपोर्ट करता है।
Disadvantages – नुक़साम
- मोनोलीथिक और माइक्रो कर्नेल दोनों को एक साथ Integrated करने से डिज़ाइन और इम्प्लीमेंटेशन बहुत ज्यादा कठिन हो जाता है।
- मोनोलीथिक Components उपस्थित होने के कारण Attack Surface बहुत बढ़ जाता है, जिससे सुरक्षा कम हो सकती है।
- कॉम्प्लेक्स स्ट्रक्चर के कारण अपडेट और मैनेजमेंट में काफी ज्यादा अटेम्प्ट की आवश्यकता होती है।
- मोनोलीथिक और माइक्रो कर्नेल दोनों की उपस्थिति के कारण System Resources का काफी अधिक Consumption होता है।
Example of Hybrid Kernel:
- Windows NT
- Netware
- BeOS
4. ExoKernel
एक्ज़ोकेर्नल एक ऐसा ऑपरेटिंग सिस्टम है जो बहुत कम कंट्रोल रखता है और एप्लीकेशन को सीधे हार्डवेयर का इस्तेमाल करने की अनुमती देता है। दूसरे ऑपरेटिंग सिस्टम जैसे Monolithic और माइक्रोकेर्नल की तरह यह ज्यादा सुविधाएँ नहीं देता, बल्कि यूजर को अपने तरीके से हार्डवेयर को संभालने की आज़ादी देता है। इससे एप्लीकेशन अपनी जरूरत के अनुसार सिस्टम को चला सकते हैं और परफॉर्मेंस बेहतर हो सकता है।
Advantages – फायदे
- इसकी बहुत ज्यादा तेज स्पीड होती है, क्योंकि इसमें सिस्टम में बिना रुकावट के धीरे – धीरे चलता रहता है।
- कोई एप्लीकेशन हो वो अपने हिसाब से हार्डवेयर का इस्तेमाल कर सकता हैं।
Disadvantages – नुक़साम
- अगर इसका उपयोग करके कोई एप्लीकेशन बनाना चाहे तो उसको उसको काफी मुश्किलो का सामना करना पड़ता है।
- यह बहुत ज्यादा काम्प्लेक्स होता है इसलिए यह ज्यादा लोकप्रिय नहीं है।
Example of ExoKernel:
- ExOS
- Nemesis
5. Nano Kernel
Nano Kernel जो है वह एक छोटा और हल्का OS कर्नेल होता है। यह सिर्फ हार्डवेयर को कंट्रोल कर सकता है लेकिन इसके कुछ ऐसी सिस्टम सेवाएँ होती है जिनको यह प्रदान नहीं करता है जैसे File management, networking आदि। माइक्रो कर्नेल भी ज्यादा हद तक ऐसा ही होता है, लेकिन Nano Kernel उससे भी कई गुना ज्यादा छोटा होता है।
Advantages – फायदे
- यह काफी ज्यादा हल्का होता है, जिससे यह बहुत तेजी से काम करता है।
- इसमें ज़रूरत के हिसाब से फीचर्स को जोड़ा या हटाया जा सकता हैं।
- छोटे साइज की वजह से इसमें bugs और साइबर हमले बहुत कम होते हैं।
- इसको कई अलग – अलग तरह के हार्डवेयर पर इस्तेमाल किया जा सकता है।
Disadvantages – नुक़साम
- इसमें सिर्फ जरूरत के हिसाब से चीज़ें उपस्थित होती हैं, इसलिए यह बड़े सिस्टम के लिए सही नहीं है।
- इसे तैयार करना और सही बनाए रखना बहुत ज्यादा कठिन होता है।
- कुछ काम ऐसे होते है जिनमे यह दूसरे Kernels के मुकाबले तेज़ नहीं होता।
- कुछ हार्डवेयर और सॉफ़्टवेयर ऐसे होते है जिनके साथ यह काम नहीं करता।
Example of Nano Kernel:
- EROS
- KeyOS
Working of Kernel in Hindi- कर्नेल का कार्य
कर्नेल जो है वह किसी भी ऑपरेटिंग सिस्टम का एक सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण हिस्सा होता है, जो सिस्टम के चालू होते ही मेमोरी में लोड हो जाता है और तब तक एक्टिव (Active) रहता है जब तक सिस्टम बंद नहीं हो जाता। इसका जो मुख्य कार्य वह Disk, task और memory management करना होता है।
कर्नेल सिस्टम में हो रही सभी Active प्रक्रियाओं का रिकॉर्ड रखने के लिए एक प्रोसेस टेबल बनाए रखता है। इस टेबल में हर एक प्रक्रिया के लिए अलग से एक Region Table बनी होती है, जिससे संबंधित डेटा जुड़ा होता है।
जब ‘exec’ सिस्टम कॉल की जाती है, तो कर्नेल किसी प्रोग्राम (Executable File) को मेमोरी में लोड करता है। फिर यह तय करता है कि कौन-सी प्रक्रिया को प्रोसेसर पर चलना और कौन-सी प्रक्रिया मुख्य मेमोरी में ही उपस्थित रहेगी।
आसान भाषा में, कर्नेल जो है वह सभी उपयोगकर्ता के प्रोग्राम और हार्डवेयर के बीच एक पुल की तरह काम करता है। इसका मुख्य उद्देश्य सॉफ़्टवेयर (जैसे यूज़र-लेवल एप्लिकेशन) और हार्डवेयर (जैसे CPU और मेमोरी) के बीच हमेशा सही कम्युनिकेशन बनाए रखना होता है, ताकि सिस्टम एक अच्छे और efficient रूप से काम कर सके।
How the Kernel Works in Hindi – कर्नेल कैसे काम करता है।
जब भी आप अपना डिवाइस जैसे कंप्यूटर और मोबाइल को चालू करते हैं, तो सिस्टम को शुरू करने के लिए कुछ स्टेप्स पूरे होते हैं जो बहुत ही ज्यादा महत्वपूर्ण होते है:
- Bootloader Execution – यह ऑपरेटिंग सिस्टम के Kernel को मेमोरी में लोड करता है।
- Kernel Initialization – Kernel हार्डवेयर को कॉन्फ़िगर करता है, Memory Management करता है और जीतनी भी ज़रूरी System Services होती उनको शुरू करता है।
- Process Management – इसमें Kernel सिस्टम में पहला प्रोसेस (Process) शुरू करता है जैसे “Linux में init या systemd”, जो आगे दूसरे महत्वपूर्ण Services को एक्टिव करता है।
- User Interaction – अब डिवाइस पूरी तरह ऑपरेशनल होता है, यूजर इनपुट देने के लिए तैयार हो जाते है और Applications को स्मूथ रूप से चलाने के लिए जरूरी Resources प्रदान करता है।
पूरा सिस्टम हमेशा स्मूथली काम करता रहे, इसके लिए Kernel बैकग्राउंड में लगातार System Resources की मॉनिटरिंग और management करता रहता है।
निष्कर्ष (Conclusion)
कर्नेल आपके डिवाइस का एक unsung hero है, जो बिना सके हर समय काम करता रहता है ताकि आपका सिस्टम सही और तेज़ी से चले सके। फिर चाहे आप internet browse कर रहे हों, game play कर रहे हों या फिर किसी तरह के document को edit कर रहे हों, कर्नेल हर चीज़ को कण्ट्रोल करता है जैसे resources manage करता है, security enforce करता है और हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर के बीच कम्युनिकेशन को establish करता है।
अगर आप कर्नेल को समझेंगे, तो ओपेरटिंग सिस्टम की कम्प्लेक्सिटी और efficiency को एक बेहतर तरीके से समझ पाएंगे। इसलिए अगली जब भी आप अपना डिवाइस को चालू करें, तो उस कर्नेल के बारे में जरूर सोचें जो इसे seamlessly ऑपरेट करने में एक महत्वपूर्ण अहम निभाता है।
Reference: https://www.geeksforgeeks.org/kernel-in-operating-system/
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